Life Insuarnce Frauds- Part-1, जानिए कैसे अंजाम दिया जाता है, बीमा फ्रोड को।
ग्राहकों को अपने जीवन-बीमा के सेविंग प्लान द्वारा जीवन सुरक्षा बाद में, बल्कि अपने धन की सुरक्षा पहले करनी चाहिए। और ये काम जीवन बीमा के सेविंग प्लान कभी पूरे नहीं कर सकते। इसके लिए सबसे सुरक्षित विकल्प हैं- हैल्थ इंश्योरेंस और टर्म इंश्योरेंस । अगर आप फिर भी इन्वेस्टमेंट प्रोडक्टस में इन्वेस्ट करना चाहते हैं तो बैस्ट है- म्यूचल फंड्स । इनसे बेहतर रिस्क ट्रांसफर और इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट का आप्शन फिलहाल हो नहीं सकता।
आइए इस पोस्ट में हम इसी बारे में बात करें।
जीवन बीमा से संबंधित धोखाधड़ी कैसे की जाती है, क्या-क्या वो टैक्निकल टर्म होती हैं- जिनका इस्तेमाल करके “जीवन बीमा एजेंट्स या दल्ले” हर किसी को आसानी से चूना लगा जाते हैं।
शुरू करेंगे एक Universal Truth से। “अगर कोई एक झूठ, हर रोज-लगातार बार-बार बोला जाए, तो वो झूठ कभी सच नहीं बन सकता।“ इन्शयोरेंस सैक्टर में भी ऐसा ही है। यहां पर हर एक बात पर झूठ का सहारा लेकर ही इन्शयोरेंस प्लैन बेचा जाता है। सच बोलकर इन्शयोरेंस प्लैन कभी भी बिक नहीं सकता। और ऐसे ही ज्यादातर ऐजेंट्स होते हैं, जो तोते की तरह एक झूठ लगातार रटते रहते हैं। और सामने वाला ग्राहक उन्हे ही अपनी जींदगी का हमसफर मान बैठता है।
असल में इन्शयोरेंस प्लैनस का Maximum IRR 6.7% होता है। जो की बैंक की एक नोर्मल एफ-डी के बराबर है। Intrest Rate की Calculation में आपको जो Intrest Rate दिखाया जाता है, अगर उसमें आप Time Value और Inflation Rate को add कर दें, तो IRR – 6.7% भी नहीं होगा। इन्शयोरेंस प्लैनस और बैंक की एफ-डी में ये डिफ्रेंस है कि, एफ-डी के पैसे को हर ग्राहक उसकी टैन्योर कम्पलीट होने से पहले कभी निकलवा सकता है। ऐसा करने पर ग्राहक को पूरा प्रिंसीपल अमाऊंट तो वापस मिलेगा, और उसका जो भी इंट्रस्ट होगा-वो प्रोरैटा बेसिस के हिसाब से मिल जाएगा।
इन्शयोरेंस प्लैनस में ऐसा नहीं होता है। बल्कि इन्शयोरेंस प्लैनस में अगर ग्राहक को गैरेंटिड प्लैन दिया गया है, उसका जितना प्रिमीयम उसने हर साल ( 5 साल, 7 साल या 10 साल) देना है- अगर वो उसमें से कोई भी प्रिमीयम किसी कारणवश भर ना पाए, तो वो जो भी पैसा तब तक भर चुका था- वो गैरेंटिड मिट्टी है। यानी और अगर वो उस प्लैन को प्रिमीयम ड्यू-डेट से पहले सरेंडर भी करेगा, तो उसे उसके पैसे का 70% भी मुश्किल से मिलेगा। अगर प्रिमीयम ड्यू-डेट और 3० दिन का ग्रेस पीरियड निकलने के बाद पोलसी सरेंडर करेगा तो उसे सिर्फ 15% रकम ही वापस मिल पाएगी।
वैसे हर एक ग्राहक को लाईफ-इंश्योरेंस पोलसी के साईड-ईफेक्ट नजर आने में कुछ सालों वक्त तो लगता है। पर तब तक उसे जिस एजेंट ने वो पोलसी-चिपकाई थी, उसकी या तो ट्रांसफर हो चुकी होती है, या वो खुद वो कोई और कम्पनी में ज्वाईन हो चुका होता है। ग्राहक बेचारा अपने पैसे बचाने के चक्कर में ईधर-उधर के धक्के खाता रहता है। उसकी कहीं सुनवाई नहीं होती।
इन्वेस्टमेंट प्लैन वो ही चुनना चाहिए, जो इन्फलेशन रेश्यो को बीट कर सके। यूलिप प्लैन एक बेहतर रिटर्न दे सकते हैं। पर पैसा डूबने का खतरा वहां पर भी रहता है। जैसे कि, यूलिप इन्शयोरेंस प्लैनस में कम्पनी जो फंडस Invest करती है, वो उस कम्पनी का फंड मैनेजर मार्केट में इनवेस्ट करके मैनेज करता है। इसके लिए वो अपनी एक फीस चार्ज करता है। वैसे ग्राहक को अगर मार्केट की नॉलेज हो, तो अपने फंडस वो खुद भी मैनेज कर सकता है, पर फिर भी आपकी पालसी से फंड मैनेजर की फीस का चार्ज कटेगा ही कटेगा।
इन्शयोरेंस ऐजेंटस को अपनी कम्पनी के इन्शयोरेंस-प्लैनस की कमीयां पहले से मालूम रहती हैं। पर वे अपनी चालाकी और बात-पलटने की कला का इस्तेमाल ग्राहक के सामने इस तरह से करते हैं, की ग्राहक जो पूछना चाहे, वो पूछ नहीं पाता। और बिना पूरी बात समझे, बैंक पर भरोसा करके पोलसी के लिए चैक भरकर दे देता है।
हम आपको फिर से कहना चाहेंगे की यूलिप से भी बेहतर रिटर्नस म्युचल फंडस देते है, और उन्में रिस्क यूलिप की तुलना में कम होता है, और दूसरा फायदा यह है कि ये इन्फलेशन रेट को बीट कर सकते हैं।।